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उ॒त त्ये मा॑ मारु॒ताश्व॑स्य॒ शोणाः॒ क्रत्वा॑मघासो वि॒दथ॑स्य रा॒तौ। स॒हस्रा॑ मे॒ च्यव॑तानो॒ ददा॑न आनू॒कम॒र्यो वपु॑षे॒ नार्च॑त् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tye mā mārutāśvasya śoṇāḥ kratvāmaghāso vidathasya rātau | sahasrā me cyavatāno dadāna ānūkam aryo vapuṣe nārcat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्ये। मा॒। मा॒रु॒तऽअ॑श्वस्य। शोणाः॑। क्रत्वा॑ऽमघासः। वि॒दथ॑स्य। रा॒तौ। स॒हस्रा॑। मे॒। च्यव॑तानः। ददा॑नः। आ॒नू॒कम्। अ॒र्यः। वपु॑षे। न। आ॒र्च॒त् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:33» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (क्रत्वामघासः) बुद्धि वा कर्म्म ही है धन जिनका वे (शोणाः) रक्त गुण से विशिष्ट जन और (मारुताश्वस्य) पवनों के सदृश घोड़ों के सम्बन्धी (विदथस्य) प्राप्त होने योग्य (मे) मेरे वा मेरे लिये (रातौ) दान में (सहस्रा) हजारों को (च्यवतानः) प्राप्त होता हुआ जन (उत) भी सुख देने को समर्थ हों (त्ये) वे और जो (ददानः) देता हुआ (वपुषे) सुन्दर शरीर के लिये (मा) मुझ को (आनूकम्) अनुकूलतापूर्वक (आर्चत्) आदरयुक्त करे वह (अर्य्यः) स्वामी भी सब प्रकार से तिरस्कृत (न) नहीं होता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो हम लोगों के अभीष्ट की सिद्धि करते हैं, उनके अभीष्ट की हम लोग भी सिद्धि करें, इस प्रकार स्वामी और सेवक भी वर्त्ताव करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

ये क्रत्वामघासः शोणा मारुताश्वस्य विदथस्य मे रातौ सहस्रा च्यवतानश्चोत सुखयितुं शक्नुयुस्त्ये यश्च ददानो वपुषे मा मामामानूकमार्चत् सोऽर्य्यश्चाऽभितस्तिरस्कृतो न भवति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्ये) ते (मा) माम् (मारुताश्वस्य) मरुतामिवाश्वानामयं तस्य (शोणाः) रक्तगुणविशिष्टा अग्न्यादयः (क्रत्वामघासः) क्रतुः प्रज्ञा कर्म्मैव मघं धनं येषां ते (विदथस्य) लब्धुं योग्यस्य (रातौ) दाने (सहस्रा) सहस्राणि (मे) मम मह्यं वा (च्यवतानः) च्यावयन् सन् (ददानः) (आनूकम्) आनुकूल्यम् (अर्य्यः) स्वामी (वपुषे) सुरूपाय शरीराय (न) निषेधे (आर्चत्) सत्कुर्यात् ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येऽस्माकमभीष्टं साध्नुवन्ति तेषामभीष्टं वयमपि साध्नुयाम एवं स्वामिसेवका अपि वर्त्तेरन् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जे लोक आमचे भले करू इच्छितात त्यांचे आम्हीही भले करावे. या प्रकारे स्वामी व सेवकांनीही वागावे. ॥ ९ ॥